उत्तर प्रदेश के छोटे से कस्बे नवाबगंज के रहने वाले रतन दीप गुप्ता ने बचपन से ही जिस आत्मविश्वास के साथ जिंदगी के हर मोड़ पर मुश्किलों का सामना किया वो काबिले तारीफ है। आइये जानते हैं उनके संघर्ष की पूरी कहानी…
कोशिश कर हल निकलेगा,
आज नहीं तो कल निकलेगा,
अर्जुन के तीर-सा सध,
मरुथल से भी जल निकलेगा।
रोजी रोटी के लिए सड़क के किनारे कभी मोमबत्ती तो कभी झंडे बेचने वाले लड़के ने सिविल सर्विसेस की परीक्षा पास कर जो मिसाल कायम की है वह हमेशा यही सीख देती है कि विपरीत परिस्थियां आपका तब तक कुछ नहीं बिगाड़ सकती जब तक आप खुद उन्हें ऐसा करने की इजाज़त नहीं देते।
उत्तर प्रदेश के छोटे से कस्बे नवाबगंज के रहने वाले रतन दीप गुप्ता ने बचपन से ही जिस आत्म विश्वास के साथ जिंदगी के हर मोड़ पर मुश्किलों का सामना किया वो काबिले तारीफ है सामने चाहे कितनी भी बड़ी चुनौती रही हो, वो घबराये नहीं, वक्त ने चाहे जिस तरह भी उनकी परीक्षा ली उन्होंने डट कर मुकाबला किया।
प्रारम्भिक शिक्षा
गाँव के ही विद्यालय से उन्होंने प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त की। तीन भाई बहनों का एक छोटा सा परिवार जिसकी जिम्मेदारी उनके पिता के कन्धों पर थी जिसका गुजर बसर उनकी एक छोटी सी दुकान के सहारे था उसी से उनके घर की रोजी रोटी चलती थी।
रतन दीप गुप्ता बताते हैं कि उनका बचपन तो सामान्य रहा लेकिन वो जैसे-जैसे बड़े हुए उनके घर की आर्थिक हालत के साथ–साथ रतन की पढ़ाई का स्तर भी निरंतर गिरता गया। जिसका असर साफ तौर से उनके परीक्षा परिणामों में देखा जा सकता था। वो बताते हैं 10वीं में उन्हें 66% अंक मिले। 11वीं में तो वो फेल होने से बाल-बाल बचे और 12वीं में जैसे तैसे खीच तान के उन्हें 51% अंक प्राप्त हुए और यहीं से उनके जीवन में निराशाओं का दौर शुरू हुआ।
आर्थिक हालत की मार
उनके घर की आय का एकमात्र स्त्रोत उनके पिता की दुकान भी बंद हो गयी थी। आगे पढ़ने कॉलेज की फीस के लिए उनके पास पैसे नहीं थे। जीवन में छाए घौर अन्धकार के साथ-साथ घर में भी चारों तरफ अन्धेरा था क्योंकि घर की बिजली का कनेक्शन भी कट चुका था, यहाँ तक रोज़ाना दोनों जून की रोटी का बंदोबस्त कैसे होगा यह भी सोचना होता था हर तरफ से आफत थी रतन अपने भाई बहनों में सबसे बड़े थे इसलिए पिता जी के साथ उन्हें भी हर वक्त समस्याएं व चिंता अंदर से खाती रहती थी। उस मुश्किल समय में उन्हें कुछ समझ नहीं आता था कि आखिर क्या करें?
उम्मीद की किरण
इन दिक्कतों के बुलंद पहाड़ को धराशाही करने की कोशिशों में रतन को आखिरकार 100 रूपये प्रतिमाह पर एक ट्यूशन मिल गया। जिसने उन्हें उनके जीवन का लक्ष्य दिया। उन्होंने ट्यूशन के उन पैसों से प्रतियोगिता दर्पण नामक मासिक पत्रिका खरीदी, जिसमें सिविल सेवा के चयनित बच्चों के इंटरव्यू छपे थे। जिन्हें पढ़कर रतन दीप को भी हिम्मत मिली और मन में उम्मीद की एक किरण जागी। उन्होंने सोचा अगर वो भी मेहनत करें तो अपना जीवन बदल सकते हैं। एक सफल व्यक्ति बन सकते हैं।

उनके मन में UPSC के लिए जागा यह प्रेम बस फिर दिन प्रति दिन बढ़ता गया और उन्होंने निश्चय किया कि वो आगे बढ़ेंगे और इस फैसले में उनके दोस्तों ने भी उनका बहुत साथ दिया उनके कॉलेज की फीस उनके दोस्तों ने भर दी। रतन दीप ने भी पास के ही एक विद्यालय में 600 रूपये प्रतिमाह पर पढ़ाना शुरू कर दिया, जिससे उन्हें तैयारी में थोड़ी आर्थिक सहायता भी मिल सके और वो परिवार पर आई मुश्किलों को कम करने में थोड़ी मदद कर सकें।
SSC में हुआ चयन
जहाँ एक ओर जीवन को लक्ष्य मिल गया था वहीँ दूसरी ओर आर्थिक तंगी ने पाँव पकड़ा हुआ था जिसके लिए रतन अध्यापन के साथ-साथ सड़क के किनारे कभी मोमबत्ती तो कभी झंडे बेचा करते थे और रात में अपनी पढ़ाई किया करते थे। वो कहते हैं ना, जब ठान लो तो हर ऊँचें से ऊँचा पर्वत भी छोटा लगता है। बस मेहनत रंग लाई और रतन दीप का चयन स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया और एसएससी के माध्यम से अकाउंटेंट के पद पर हो गया लेकिन समस्या यह थी कि रतन का सपना तो सिविल सर्विसेस जॉइन करना था घर की आर्थिक स्थिति को देखते उन्हें नौकरी जॉइन कर ली और साथ ही यह ख्याल भी मन में था कि शायद अब तैयारी करना ज्यादा आसान होगा लेकिन अभी मजिल दूर थी।
संघर्ष की लम्बी लड़ाई का सफर रतन को अभी तय करना था। उन्होंने मेहनत की और पहले प्रयास में वो मुख्य परीक्षा तक पहुंचे लेकिन पास नहीं हुए और आगे स्थिति और खराब होती गयी।
आसपास के लोगों ने बढ़ाया उत्साह
दूसरे प्रयास में अत्यंत गंभीर स्वास्थ्य समस्या के कारण वह प्रारंभिक परीक्षा तक पास नहीं कर पाए। तीसरे व चौथे प्रयास में उन्हें इंटरव्यू के बाद निराशा का मुंह देखना पडा। उन्हें लगा कि शायद उनका सपना अधूरा ही रह जाएगा। बीमारी के कारण वो ना ही ठीक ढंग से अपना काम कर पाते थे ना ही पढ़ पाते थे। चारों तरफ से छाए निराशा के बादलों और इतनी असफलताओं के भी उनका मनोबल नही टूटा क्योंकि इस कठिन समय में उनके साथ उनका परिवार, उनके साथी-मित्र, सहकर्मी हमेशा उनका उत्साह बढ़ाते रहते थे। उनकी बहन कहती थी भैया आप हिम्मत मत हरिये एक दिन आप जरुर सफल होंगे। वो कहती थी –
कोशिश कर हल निकलेगा,
आज नहीं तो कल निकलेगा,
अर्जुन के तीर सा सध,
मरुथल से भी जल निकलेगा ।।
पांचवें प्रयास में मिली सफलता
और इन लाइनों को सुनकर रतनदीप के अंदर आत्म विश्वास की जैसे बिजली दौड़ जाती थी। आखिरकार उन्हें उनके इतने सालों की मेहनत, उनके कड़े तप का फल मिला। उनके पांचवे प्रयास में वो सफल हुए और वर्तमान में आज भारतीय रेलवे परिवहन सेवा IRTS के अधिकारी के रूप में रतन दीप गुप्ता कार्यरत हैं।
दोस्तों रतन दीप गुप्ता कहते हैं कि यह परीक्षा केवल ज्ञान की नहीं बल्कि आपके धैर्य, संघर्ष और संयम की भी है जो आपको परिपक्वता की अग्नि में जलाकर खरा सोना बनाती है। जब कभी आपको लगे की परेशानियों के आपके चारों और घेरा बना लिया है। तो मन ही मन गुनगुना लीजिये –
वह पथ क्या, पथिक कुशलता क्या
यदि पथ में बिखरे शूल न हों,
नाविक की धैर्य परीक्षा क्या
यदि धाराएं प्रतिकूल न हों।