बड़े बूढ़े कहते हैं कि क्रोध नर्क का द्वार होता है। कहीं ना कहीं हम भी ये बात समझते हैं कि क्रोध करना हमारे व्यक्तित्व के लिए एवं हमारी सेहत दोनों के लिए बहुत हानिकारक होता है। आज हम आपको एक छोटे से लड़के की कहानी सुनाने जा रहे हैं। जिसे बहुत क्रोध आता था। अंत में उसने भी अपने इस स्वभाव में परिवर्तन लाया। अपने क्रोध पर नियंत्रण कर एक बेहतरीन व्यक्तित्व का निर्माण किया। हमारा आपसे वादा है इस कहानी को सुनने के बाद आप स्वयं अपने स्वभाव में बदलाव लायेंगे और कोशिश करेंगे की क्रोध की छाया आपसे कोसों दूर रहे।
दोस्तों एक बात समझ लीजिये जब हम झुकना सीख जाते हैं, तब हमारे अंदर विनम्रता आ जाती है। जिस समय से हम शालीनता को अपना आभूषण बना लेते हैं, उसी क्षण से हमारा व्यक्तित्व सशक्त हो जाता है। कहते हैं कि शालीनता किसी मोल नहीं मिलती है, लेकिन उससे दुनिया में सब कुछ ख़रीदा जा सकता है। वो भी जो मोल चुकाने पर भी न मिले।
कहानी
एक छोटा लड़का था। जिसका स्वभाव बहुत ही खराब था। वह बात-बात पर लड़ाई झगडा करता था। लोगों को भला बुरा कहता था। हमेशा गुस्से से भरा रहता था। उसके इस स्वाभाव को दिन प्रतिदिन और बिगड़ता देख उसके पिता ने उसे कील का एक बैग सौंपने का फैसला किया, और उससे कहा कि हर बार जब लड़का अपना आपा खो देगा, तो उसे दीवार पर कील ठोकनी पड़ेगी। पहले दिन, लड़के ने दीवार में 37 कील लगाई। इतनी कील ठोककर लड़का थक गया। हर रोज यही होता लड़के को जितनी बार क्रोध आता उसे उतनी ही कीलों को दीवार में लगाने के लिए हथौड़ा मारना पड़ता। लड़का परेशान हो गया और अब अपने स्वभाव पर नियंत्रण करने लगा।
धीरे-धीरे अगले कुछ हफ्तों में ही उसने अपने स्वभाव पर नियंत्रण पा लिया और उन कीलों की संख्या जो कि दीवार में लगानी थी, धीरे-धीरे कम होने लगी। वो लड़का ये बात समझ गया कि दीवार में उन कीलों को हथौड़ा देने की तुलना में अपने स्वभाव को नियंत्रित करना आसान है।
अंत में, वह दिन आ गया जब लड़के ने एक बार भी अपना आपा नहीं खोया। उसने अपने पिता को खबर सुनाई और पिता ने कहा कि अब उसे हर दिन एक कील बाहर खींचनी है। जो उसने स्वयं पर नियंत्रण पाने के लिए दीवार पर लगाईं थी।
क्रोध का परिणाम
दिन बीतते गए और वो लड़का आखिरकार अपने पिता को बताने में सक्षम हो गया कि सभी कील निकल गयी हैं। पिता अपने बेटे का हाथ पकड़कर उस दीवार तक ले गया और कहा तुमने अच्छा काम किया है बेटा, लेकिन दीवार पर हुए इन छेदों को देखो। अब दीवार कभी भी पहले जैसी नहीं होगी। जब आप गुस्से में बातें कहते हैं, तो वे इस तरह से निशान छोड़ देती हैं। आप गुस्से में कड़वी बातें कहकर माफी तो मांग सकते हैं लेकिन रिश्ते पहले की तरह नहीं हो पाते इसलिए अपने क्रोध पर नियंत्रण पाना बहुत जरूरी है। यदि दुर्योधन ने क्रोध न करके श्रीकृष्ण के प्रस्ताव को स्वीकार किया होता, तो महाभारत का इतना बडा युद्ध टल सकता था।
शालीनता की दिशा में हम जैसे ही गतिशील होते हैं, उस वक्त हमारा अहंकार, ईर्ष्या-द्वेष और क्रोध कई बार बीच में आकर बाधा डालता है। लेकिन यह हमें तय करना है कि हमें अपने क्रोध की कमजोरी पर विनम्रता से, शालीनता से, सौम्यता से, शिष्टता से और मधुरता से विजय पानी है।
क्रोध पर कैसे करें नियंत्रण?
गाँवों में एक कहावत है कि गाल फुलाना और हंसना दोनों काम एक साथ नहीं किये जा सकते। अर्थात् हंसना और क्रोध करना, ये दोनों काम एक साथ सम्भव नहीं। जो आदमी हर समय खुश रहेगा, मुस्कराता व हंसता रहेगा, वह इन विकृतियों से बचता रहेगा। उसके चित्त में शांति रहेगी। साथ ही वह स्वस्थ भी रहेगा। किसी भी प्रकार का मानसिक रोग आपको हानि नहीं पहुंचा सकता। आग में पानी डालने से आग बुझती है। ज्यादा पानी पीने से अनुचित आक्रोश की आग बुझती है। क्रोध पर नियंत्रण पाने के लिए जब आप क्रोध में हो तो बोलने से पहले दस तक गिनो, और अगर ज़्यादा क्रोध में हों तो सौ तक गिनो। याद रखिए क्रोध को जीतने में मौन सबसे अधिक कारगर होता है।
बाइबिल में लिखा गया है – “मूर्ख मनुष्य क्रोध को जोर-शोर से प्रकट करता है, किंतु बुद्धिमान व्यक्ति शांति से उसे वश में करता है।” तो दोस्तों जब भी गुस्सा आए या आप किसी को कुछ बुरा भला और कडवा बोलने वाले हों, तो सबसे पहले उसके परिणाम पर विचार करो। क्योंकि
क्रोध मूर्खता से प्रारम्भ होता है और पश्चाताप पर जाकर खत्म होता है।