आज हम आपको एक युवा IPS Sukirti Madhav Mishra की प्रेरणादायक कहानी बताने जा रहे हैं। जिन्होंने अभावों के बीच रहकर अपनी ज़िंदादिली और जज़्बे के दम पर संघर्ष की राह चुनी और सफलता प्राप्त की...
“देखे जो सपने पीछा कर,
हदों को अपनी खींचा कर,
नये सपनों की बात तो कर,
एक कदम बढ़ा, शुरुआत तो कर।”
जो कभी हाफ पैंट और मटमैला बुशर्ट पहनकर पैरों से धूल उड़ाते हुए, अपने पशुओं को चराते थे। जिनके मस्त मगन से दिमाग में बस सबके साथ घंटों खेलते रहने की ही धुन सवार रहती थी। जिन्होंने अपने परिवार के साथ 22 साल के संघर्ष में काफी कुछ सीखा। जिनके माता-पिता खेती किसानी करते थे, अभावों से भरी जिंदगी और मुश्किल वक़्त यह सब कुछ था लेकिन अहम बात ये थी कि सुकीर्ति माधव मिश्रा ( IPS Sukirti Madhav Mishra ) के माता–पिता ने हमेशा उन्हें बड़े सपने देखने के लिए प्रेरित किया। शायद उनकी कोशिशों का ही परिणाम है कि आज सुकीर्ति माधव मिश्रा उत्तर प्रदेश में एक IPS अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं।
दोस्तों, आज हम आपको एक युवा IPS अधिकारी सुकीर्ति माधव मिश्रा की प्रेरणादायक कहानी बताने जा रहे हैं। जिन्होंने अभावों के बीच रहकर अपनी ज़िंदादिली और जज़्बे के दम पर संघर्ष की राह चुनी और सफलता प्राप्त की।
विषय
बचपन
बिहार के जमुई जिले के एक छोटे से गाँव मलयपुर के निवासी सुकीर्ति का सारा बचपन मौज मस्ती और हुड़दंग करते हुए गाँव में बीता। वो समय अभाव से भरा हुआ जरुर था लेकिन ज़िन्दगी की छोटी-छोटी मीठी सुनहरी यादों के पन्नों से भरा हुआ है। जिन्हें आज भी याद करते हुए सुकीर्ति बताते हैं कि कभी पुरानी किताबों के ढेर से कोई पुरानी कहानी की किताब मिल जाती थी तो धूल साफ करके पूरी किताब वो एक बार में पढ़ जाते थे। कभी नंगे पाँव कटी पतंग के पीछे भागते, कभी- कभी गौरेया का पीछा करते। गाँव के तालाब में मछली पकड़ते, बेर तोड़ते, बाबा के लिये खेत पर कलेवा लेके जाते और मौका मिलते ही ट्यूबवेल में नहाने के लिए घुस जाते थे।
किताबों का झोला लेके स्कूल जाना और वहां बोरे पे बैठना और बस स्कूल की छुट्टी वाली आखिरी घंटी बजने का इंतज़ार करते थे। गाँव में भीषण गरमी में खुले आसमान के नीचे तारे गिनते हुआ सोना, बारिश में भीगना और खेलना, ठंड में पुआल की गर्मी में बिस्तर बना लेना और उन रातों में बड़े-बड़े सपने देखना। ऐसा खुशनुमा बचपन तो बीत गया क्योंकि मन में कोई लक्ष्य तय नहीं था और देखते ही ग्रेजुएशन फिर MBA भी पूरा हो गया। सुकीर्ति बताते हैं कि 2010 में जब उन्होंने MBA पूरा किया तो उसके तुरंत बाद ही उनकी कोल इंडिया लिमिटेड में नौकरी लग गई। इसके साथ ही 2010 उनके लिए यादगार इसलिए भी है क्योंकि उसी साल 22 सालों की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद उनके पिताजी की नौकरी भी माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बहाल हुई।
खुद को औसत छात्र ही माना
सुकीर्ति कहते हैं कि बिहारी होने के कारण उन्होंने सिविल सर्विसेस के बारे में बहुत कुछ सुन रखा था। उनके पिताजी भी हमेशा से ये चाहते थे कि सुकीर्ति UPSC की परीक्षा दें और लोक सेवा के क्षेत्र में अपना करियर बनाएं, लेकिन सुकीर्ति जिन्होंने हमेशा मौज मस्ती में जीवन जिया था वो अपने आप को औसत छात्र मानते थे और इसी के कारण हमेशा इस कठिन परीक्षा के सफर से दूर रहने की कोशिश करते थे। वो खुद को जितना आंकते थे, योग्य मानते थे उस मुताबिक़ MBA के बाद कोल इंडिया लिमिटेड की नौकरी उनके लिए काफी थी उनका मानना था कि बस यही बेहतर हिया। वो खुश थे और इसी तरह दिन, महीने और कुछ साल बीत गए।
UPSC क्यों?
लेकिन कहीं कुछ तो ऐसा था, जो उनके मन में चुभ रहा था। कई सवाल मन को अशांत बनाये हुए थे। क्या मुझे कहीं और होना चाहिए? क्या मैं कहीं और बेहतर कर सकता हूँ? मैं ज़िन्दगी को और सार्थकता दे सकता हूँ? क्या मुझे सपने देखने चाहिए? क्या मुझे उन सपनों का पीछा करना चाहिए, जो मेरे पिताजी ने मेरे लिए देखे थे? और इन अनगिनत सवालों से घिरा हुआ सुकीर्ति का मन धीरे-धीरे आकुल और अधीर होने लगा। लेकिन इसके साथ ही एक बड़ा सवाल भी मन को परेशान किये हुए था, कैसे? UPSC? जिस परीक्षा में सबसे तेज़, सबसे प्रतिभाशाली लोग शामिल होते हैं। क्या इस राह का सफर मुझे चुनना चाहिए?
नौकरी के साथ कैसे हो तैयारी?
माधव अपनी आर्थिक बाध्यताओं की वजह से न तो नौकरी छोड़ सकते थे और न ही नौकरी के साथ कोलकाता में किसी कोचिंग में अभ्यास कर सकते थे। इन सभी परिस्थितियों के साथ सुकीर्ति को सदैव बस यही लगता था कि क्या मैं ये कर पाऊंगा? लेकिन क्या पिता जी के सपने को ऐसे ही छोड़ दूं। कम-से-कम उनके सपने के लिए ही सही एक बार अपनी पूरी ईमानदारी से प्रयास तो करना ही चाहिए। जिससे कभी भी ये पछतावा नहीं रहे कि काश एक बार उस लक्ष्य को पाने की कोशिश कर ली होती और इन अनगिनत सवालों की उधेड़बुन के साथ सुकीर्ति माधव ने अपने सिविल सर्विसेस की परीक्षा की यात्रा की शुरूआत की।

पक्के इरादों से हासिल किया लक्ष्य
बस अब क्या था लक्ष्य तय किया जा चुका था और सुकीर्ति ने भी पूरी जी-जान व जोशो-खरोश के साथ तैयारी शुरू कर दी। हर एक गुजरते दिन के साथ माधव का निश्चय और अधिक दृढ़, और मजबूत होता गया। इस सफर में कई परेशानियां आईं, लेकिन सुकीर्ति के इरादे पक्के थे और अब उन्होंने सोच लिया था कि लक्ष्य की प्राप्त करना ही है चाहे जो हो जाये। मेहनत का फल मिला और पहले प्रयास में उनका चयन IRS में हो गया और फिर अगली कोशिश में वो IPS Sukirti Madhav Mishra बन गये।
सुकीर्ति माधव मिश्र (IPS Sukirti Madhav Mishra) कहते हैं कि अनगिनत दुविधाओं और परेशानियों के बावजूद मैंने एक सपना देखा, खुद पर भरोसा किया और बस मेहनत की जिसमें घरवालों ने बहुत साथ दिया उनके आशीर्वाद से ही मेरा यह सफर सफल हुआ। वो कहते हैं दोस्तो! बड़े सपने देखो, खुद पर भरोसा व आत्मविश्वास रखो, मेहनत करो। निश्चित रूप से आप सफल होंगे।
“देखे जो सपने पीछा कर,
हदों को अपनी खींचा कर,
बीती ताहि बिसार के
नये सपनों की बात तो कर,
मंज़िल तो मिल ही जाएगी,
एक कदम बढ़ा
शुरुआत तो कर।”