
जब भी किसी सुपरकॉप की बात की जाती है तो हमारे दिमाग में सबसे पहले किसी न किसी फ़िल्मी किरदार का नाम आ जाता है। फिल्मों में भी प्रायः हीरो को ही सुपरकॉप के रूप में दिखाया जाता है। लेकिन अब इस सोच को पूरी तरह बदलने का समय आ गया है अब न फ़िल्मी किरदार है और न ही कोई हीरो। सुपरकॉप की कतार में कंधे से कंधा मिलाकार लडकियां समाज में मिसाल कायम कर रही हैं। क्या आपका सामना कभी असल ज़िन्दगी में किसी सुपरहीरो से हुआ है या किसी दबंग महिला से। जिसने आपकी हवाइयां उड़ा दी हों।
तो चलिए आज हम आपको मिलवाते हैं, गुजरात की एक ऐसी पुलिस कमिश्नर मंजिता वंजारा से जो न केवल आपकी सोच को बदल देंगी, बल्कि उनकी यह प्रेरणादायक कहानी आपके होश भी उड़ा देगी।
विषय
पारिवारिक पृष्ठभूमि
गुजरात में दबंग छवि वाली यह महिला ऑफिसर एक सुपरकॉप के रूप में उभर कर सामने आई हैं। हम बात कर रहे हैं गुजरात पुलिस में असिस्टेंट कमिश्नर मंजिता वंजारा की। आपकी जानकारी के लिए एक और जरुरी बात बता दें कि मंजिता एनकाउंटर स्पेशलिस्ट डी.जी. वंजारा के भाई के.सी. वंजारा की बेटी हैं।

परवरिश
मंजिता के इस सफर की शुरुआत आज के हालतों जितनी सीधी और सरल नहीं थी। मंजिता का जन्म एक बहुत ही संपन्न परिवार में हुआ था। उनके परिवार में कई लोग सरकारी विभागों के विभिन्न प्रतिष्ठित पदों पर कार्यरत हैं। सबकुछ होने के बावजूद, सारी सुख-सुविधाएं पास होते हुए भी मंजिता जो कभी भी उनका लाभ नहीं मिला। उनके परिवार ने उन्हें कभी एशो आराम वाली ज़िन्दगी नहीं दी। ऐसा इसलिए नहीं क्योंकि वो लड़की थी या कोई भेदभाव था बल्कि इसलिए क्योंकि उनके परिवार वाले उनका पालन पोषण एक सामान्य परिवार की तरह करना चाहते थे।
ताकि वो सामान्य लोगों की ज़िन्दगी की मुश्किलों और तकलीफों को करीब से समझ सकें, जी सकें। जिससे कारण मंजिता को घर में मौजूद किसी भी तरह की अतिरिक्त सुख-सुविधाएं नहीं दी गई। यहाँ तक कि वो अपने स्कूल-कॉलेज के दिनों में भी पब्लिक ट्रांसपोर्ट से आया-जाया करती थी। शायद उसी का नतीज़ा है कि मंजिता ने ज़िन्दगी को बहुत करीब से समझा, समाज की बुराइयों को, लोगों की परेशानियों को पास से देखा और उसकी गंभीरता को महसूस किया। क्योंकि आज जिस ईमानदारी से वो समाज के लिए कार्य कर रही हैं, वो काबिले तारीफ़ है। अपने काम को इतनी शिद्दत से वो ही निभा सकता है, जिसने उस तकलीफ को करीब से समझा हो, उसकी गहराई को जाना हो।
इंजीनियरिंग, फैशन डिजाइनिंग और टीचिंग
घर के जिस माहौल में मंजिता पली बढ़ी और उनकी जिस तरह से परवरिश की गयी, उससे उनके अंदर समाज में फैली कुरीतियों में बदलाव लाने और लोगों के लिए कुछ करने की इच्छा तो शुरू से ही थी किन्तु उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वो सिविल सर्विसेज की दिशा में अपना करियर बनाएंगी। उन्होंने 12वीं के बाद इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने का फैसला किया। मंजिता बचपन से ही बेहद क्रिएटिव रहीं हैं तो इंजीनियरिंग की पढाई के दौरान उनका झुकाव फैशन डिज़ाइनिंग की ओर हुआ।

फिर उन्होंने बी.टेक खत्म करने के बाद निफ्ट की परीक्षा दी और उसमें पास भी हो गयी। फिर क्या था, मनपसन्द काम था आखिर किसे नहीं भाता, लेकिन नियति को तो कुछ और ही मंजूर है तो फिर सबकुछ सरल रूप में कैसे चल सकता था। मंजिता ने बतौर फैशन डिज़ाइनर कुछ समय तक एक प्रतिष्ठित फैशन ब्रांड के लिए काम किया। लेकिन समाज के लिए कुछ करने की चाहत जो मन में हमेशा चुभती रहती थी, उसके चलते उन्होंने इस फील्ड को पूरी तरह अलविदा कह दिया।
लेकिन अभी भी वो अपने उस लक्ष्य की दिशा से अनजान थीं जिसके लिए वो बनीं हैं। फैशन डिज़ाइनिंग छोड़ने के बाद उन्होंने एजुकेशन विषय में मास्टर्स किया और अपने कौशल व मेहनत के दम पर गोल्ड मेडलिस्ट बनीं। पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने गांधीनगर के एक बीएड कॉलेज में बतौर लेक्चरर भी काम किया लेकिन उनकी वो मंजिल उन्हें अब भी अपनी और आकर्षित कर रही थी।
सिविल सेवा का सफर
शिक्षण के इस सफर के दौरान उनके मन में सिविल सर्विस के प्रति रुझान बढ़ा। इस बार वो अपनी नौकरी के साथ ही सिविल सर्विस परीक्षा की तैयारी में भी जुट गई और ऐसा कब हुआ हो कि मेहनत रंग न लाई हो। साल 2011 में उन्हें सफलता मिली और मंजिता ने सिविल सर्विसेज की परीक्षा पास की। मंजिता जिस ईमानदारी और दृढ हौंसलों के साथ अपने काम को करती हैं उसी के चलते 2013 में ही वे असिस्टेंट कमिश्नर ऑफ पुलिस (सहायक आयुक्त) के रूप में नियुक्त हुईं।
माँ का रहा महत्वपूर्ण योगदान
मंजिता आज उन्नति के जिस मुक़ाम पर हैं उसमें उनकी माँ का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उनके घर की ख़राब परिस्थितियों के कारण उनकी माँ नहीं पढ़ पायीं थी, लेकिन वो शिक्षा की अहमियत को बखूबी समझती थीं। उन्होंने हमेशा अपनी बेटी को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। उसका हौसला बढ़ाया। यही हौसला आज भी उन्हें ताकत देता है।
आज मंजिता वंजारा लड़कियों के लिए प्रेरणा हैं, गरीबों व मदद की गुहार लगाने वाले हर उस व्यक्ति के लिए उम्मीद की किरण हैं, जो कानून पर भरोसा करता है, उनके दरवाजे खटखटाता है। एक बेहद ईमानदार और जिम्मेदार छवि वाली मंजिता वंजारा अपने काम और अपराधियों को पकड़ने के अलग-अलग तरीकों के लिए भी चर्चाओं में छाई रहती हैं।
सुपरकॉप की छवि
मंजिता ने छारनगर नामक बस्ती जो अवैध शराब के कारोबार के लिये काफी बदनाम है उसे न केवल इस तरह के अवैध धंधों से मुक्त किया बल्कि उस क्षेत्र की महिलाओं को इस धंधे को छोड़ समाज की मुख्यधारा से जुड़ने के लिए प्रेरित किया। आज छारनगर अवैध शराब के कारोबार से पूरी तरह मुक्त हो चुका है। जिसका श्रेय सिर्फ मंजिता को जाता है। इसके आलावा भी कई अनोखे कारनामों के लिए मंजिता काफी प्रसिद्ध हैं। एक बार मंजिता ने बुर्का पहनकर एक जुए के अड्डे पर रेड मारकर 28 जुआरियों को रंगे हाथों पकड़ा था। उन्होंने कई सेक्स रैकेट के खुलासे ऐसे ही रेड मारकर किए हैं।

मंजिता वंजारा जी के हुनर और उनकी काबिलियत के बारे में और क्या-क्या कहें… ऊनि प्रतिभा का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक इंजीनियर, एक फैशन डिज़ाइनर, एक लेक्चरर के अलावा मंजिता भरतनाट्यम और कुचिपुड़ी की एक अच्छी डांसर भी हैं। कला, बुद्धि और साहस का संगम उन्हें बेमिसाल बनाता है।
इन सबके साथ अपने काम में व्यस्त होने के बावजूद मंजिता सोशल वर्क से भी जुड़ी रहती हैं। उनका कहना है कि उनके लिए किसी गरीब महिला के होंठों पर मुस्कान लाना, किसी असहाय की मदद करना, किसी बच्चे की शिक्षा में मदद कर उसके जीवन को सही राह पर लाना ज्यादा जरुरी और कीमती है। मंजिता सदैव प्रयासरत रहती हैं कि समाज में बेटियां आगे बढ़ सकें, अपना नाम रौशन कर सकें। साहस, बुद्धि व कौशल से परिपूर्ण गुजरात की इस सुपरकॉप को हमारा सलाम।

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जय हिंद !