एक गरीब किसान की बेटी जिसकी पिता की मौत के बाद उसकी माँ ने उसकी परवरिश की और दिल्ली, इंग्लैंड में पढने और न्यू-यॉर्क में नौकरी करने लायक बनाया, लेकिन उस बेटी ने परदेस की नौकरी की जगह अपने देश की सेवा को अधिक महत्त्व दिया और बन गई IPS इल्मा अफरोज़ …

सफलता की अनेकों कहानियां आपने सुनी होंगी, पढ़ी होंगी लेकिन इल्मा के सफलता के इस सफर की कहानी में उनका संघर्ष आपकी सोच, आपकी कल्पना की दीवारों से कहीं ज्यादा ऊपर है। मुरादाबाद शहर के छोटे से क़स्बे कुंदरकी में एक रूढ़िवादी किसान परिवार में जन्मीं IPS इल्मा अफ़रोज जिसने जिसने एक किसान के घर से ऑक्सफ़ोर्ड और फिर IPS ऑफिसर बनने का सफर तय किया। इल्मा ने सिविल सेवा की परीक्षा पास कर न केवल अपने परिवार बल्कि अपने देश और अपने क्षेत्र को गौरवान्वित किया है।
विषय
रुक जाना नहीं

दोस्तों, युवा IAS अधिकारी और लेखक निशांत जैन की किताब ‘रुक जाना नहीं’ आज की युवा पीढ़ी के लिए एक बेहतरीन माध्यम है। स्वयं को चुनौतियों के लिए प्रेरित करने का, अपने लक्ष्य को पाने के लिए संकल्पित रहने का, किसी भी समस्या के आगे कभी न हार मानने का जो जोश और जूनून इस किताब की कहानियाँ युवाओं में भरती हैं, वह अद्भुत हैं। यह कहानियाँ हमारे जैसे ही उन सामान्य लोगों की हैं जिन्होंने संघर्ष करते हुए अपने लक्ष्य को प्राप्त किया और इन सफलता की दास्तां को एक खुबसूरत प्रेरणात्मक कहानियों के रूप में लाये हैं निशांत जैन जी। आज ‘रुक जाना नहीं’ की एक कहानी हम आपके बीच लेकर आयें हैं। तो चलिए आज जानते हैं आत्मविश्वास से भरी एक ऐसी बेटी की कहानी।
देश की बेटियों के लिए मिसाल – IPS इल्मा अफरोज़
IPS ऑफिसर इल्मा अफ़रोज ने सिविल सेवा परीक्षा में 217वीं रैंक हासिल कर अपनी सफलता की ऐसी मिसाल कायम की। जिससे आज हज़ारों लडकियाँ विपरीत परिस्थियों के होते हुए भी, अपनी पहचान बनाने की लड़ाई में अपने संघर्ष में कोई कमी नहीं छोड़ती।

इल्मा कहती हैं कि दुनिया भर में पीतलनगरी के नाम से मुरादाबाद मशहूर है। यहाँ बड़ी मेहनत से कारीगर अपने हुनर का जादू बिखेरते हुए हस्तशिल्प बनाते हैं। उन्होंने मुरादाबाद की इन गलियों में ही अपने काम के उस्ताद कारीगरों से “सस्टेनेबल प्रोडक्ट्स” की पहली सीख ली थी। वो बताती हैं, उनके पिता एक किसान थे। हर साल अप्रैल में गेहूं की फसल सरकारी लेवी पर देकर उनके बाबा शहर जाके उनकी और उनके भाई की किताबें, पेंसिले और पढाई की बाकी सारी जरुरी चीजें लाते थे। यदि कभी किसी जरुरी काम से उनके बाबा जिला कलेक्टर या SDM कार्यालय जाते थे, तो वो भी उनकी उँगलियाँ पकड़े साथ चली जाती थी। वहां वो देखती थी कि दूर – दूर से, गाँव –गाँव से ज़रूरतमंदों की भारी भीड़ वहां आई हुई होती थी।
कम उम्र में पिता की मृत्यु
वो उस समय मात्र 14 साल की थीं। उनकी दुनिया पूरी तरह उजड़ गयी जब उनके बाबा का देहांत हो गया। उनकी अम्मी ने इल्मा और उनके छोटे भाई की परवरिश खुद की। किसी से मदद नहीं ली। इस कठिन समय में भी उनकी अम्मी ने बड़े ही लाड और दुलार से दोनों बच्चों को बड़ा किया। कभी उन दोनों में भेद भाव नहीं किया। जिसके लिए उनकी अम्मी को अक्सर सुनना पड़ता था की, “लौंडिया को इतना सर पे मत बिठाओ। पराया धन है एक दिन दूसरे के घर ही जाएगी।” लेकिन उनकी अम्मी ने उन्हें हमेशा जीवन में कड़ा संघर्ष करने एवं मेहनत, लगन और अटूट विश्वास के साथ अपने पैरों पर अडिग होकर निरंतर आगे बढ़ना ही सिखाया।
शिकायत नहीं समाधान
जिस तरह इल्मा को उनकी अम्मी ने पाल पोस कर बड़ा किया था, उस परवरिश में हमेशा सिखाया था कि जीवन में शिकायत करने, कमियां ढूंढने की बजाए समय की नज़ाकत और मुश्किलों की आँखों में आँखें डाल कर उनका सामना करना है। सामने चाहे कितनी ही भीषण चुनौतियाँ क्यों न हों हमें हमेशा अर्जुन की तरह सिर्फ अपना लक्ष्य मछली की आँख ही दिखनी चाहिए।

इल्मा बताती हैं कि एक बार वो कलक्ट्रेट गयी थी छात्रवृत्ति के काम से तब दफ्तर के बाहर खड़े सफ़ेद वर्दी वाले अर्दली ने उनसे कहा था, बेटा घर जाओ किसी बड़े के साथ आना। बच्चों का यहाँ पर क्या काम है..?” लेकिन इल्मा बिना डरे बिना किसी संदेह के कार्यालय के अंदर चली गयी। स्कूल की यूनिफार्म में एक छोटी छात्रा को देख कर डीएम जी पहले तो मुस्कुराये, फिर इल्मा के फार्म पर साइन करके बोले -“सिविल सर्विसेज ज्वाइन करो इल्मा!”
इंग्लैंड-अमेरिका में पढ़ाई और नौकरी
और वो दिन था और आज का दिन है इल्मा एक जानी मानी IPS officer हैं, लेकिन आपको क्या लगता है डीएम साहेब ने कहा और इल्मा IPS बन गयी? नहीं, इस मुकाम को पाने के लिए इल्मा ने एक लंबा सफर तय किया। सबसे पहले इल्मा ने अपनी स्कूल की पढाई के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रतिष्ठित सेंट स्टीफेंस कॉलेज से दर्शनशास्त्र में बी.ए. ऑनर्स से ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की। इल्मा कहती हैं गाँव से निकल कर जो तीन साल मैंने सैंट स्टीफेंस कॉलेज में बिताए, वो उनकी ज़िन्दगी के सबसे खुबसूरत दिनों में शामिल हैं। जहाँ उन्होंने जीवन के कई अनुभवों को अनुभूत किया। वहां न केवल उनका शैक्षिक बल्कि व्यक्तित्व का भी आधार मजबूत हुआ।

उसके बाद वो ऑक्सफ़ोर्ड विश्विद्यालय, इंग्लैंड के वुल्फ्सन कॉलेज चली गयी, जहाँ उन्होंने मास्टर्स की डिग्री ली और साथ ही दुनिया भर से आये छात्रों से उनकी सूझ-बूझ व विचारों से वो अवगत हुई। उनकी तर्क शक्ति का विस्तार हुआ। अगल – अलग नज़रियों को समझना, दुनिया से प्रेरणा लेना उन्होंने ऑक्सफ़ोर्ड यूनियन में सीखा। उनका सफर यहीं नहीं रुका उसके बाद इल्मा ने न्यूयॉर्क सिटी में कार्य करने का अनुभव भी प्राप्त किया।
परदेस की चमक, नहीं भुला पाई मिट्टी की महक
वो कहती हैं सात समुंदर पार दुसरे देश की चमक-दमक के बीच हमेशा अपनों का ख्याल आता था कि अम्मी वहां कुन्दरकी में अकेली होंगी, इस वक्त शायद उनको मेरी कितनी ज़रुरत होगी। इतना पढ़ लिखकर ये सफलता मैंने किस दिन के लिए पाई है? मेरी शिक्षा का क्या अर्थ है कि उनका कौशल स्वयं के नहीं बल्कि किसी दूसरे देश की ग्रोथ को संवार रहा है? इल्मा जब भी छुट्टियों में अपने घर वापस आती थीं, तो लोगों की आँखें उन्हें देख कर चमक जातीं थी “हमारी लल्ली जहाज में उड़ के विदेश पढने गयी थी पूरी दुनिया में नाम रौशन करके आई है” लेकिन इल्मा के मन में अपने देश अपने परिवार के लिए कुछ करने की कसक उन्हें अंदर ही अंदर परेशान कर रही थी। जिसके चलते उन्होंने अपने देश वापस आने का फैसला लिया।

IPS इल्मा अफरोज़ ने अपने भाई के प्रोत्साहित करने पर सिविल सेवा की परीक्षा दी। क्योंकि इल्मा शुरू से ही पढ़ाई लिखाई में बेहतरीन थीं। उनकी नज़रे हमेशा अपने चारों ओर की घटनाओं पर रहती थी जिससे उन्हें सिविल सेवा की परीक्षा में बहुत मदद मिली। उन्होंने सफलता प्राप्त की। इल्मा कहती हैं ज्यादा नहीं सटीक पढों। वो बताती हैं सैंट स्टीफेंस कॉलेज पहले दिन ही उन्होंने अपने कॉलेज के सभागार में मोटे–मोटे अक्षरों में लिखा हुआ, पढ़ा था – “सत्यमेव विजयते नानृतम”। यह उनका पहला पाठ था और हमेशा उन्हें रास्ता दिखाता रहता है।