‘कबाड़’ जोकि घर के कोने में पड़ा रहता है। सफाई होते ही सबसे पहले घर से बाहर फेंक दिया जाता है या रद्दी के भाव बेचकर चार पैसे कमा लिए जाते हैं। लेकिन अगर हम आपसे कहें कि इसी ‘चार आने’ वाले कबाड़ ने एक इंसान को करोड़पति बना दिया तो आप विश्वास नहीं करेंगे। तो आइये आज हम आपको सुनाते हैं, सफलता की ऐसी कहानी जिसमें एक व्यक्ति ने कबाड़ को सोना बना दिया। आपको हैरान जरुर करेगी लेकिन यह बात सच है। राजस्थान के हृतेष लोहिया (Hritesh Lohiya) जो आज न सिर्फ करोड़ों का कारोबार कर रहे हैं, बल्कि देश और विदेश में कबाड़ के दम पर अपनी काबिलियत का लोहा मनवा रहे हैं। उनके अनोखे विचार ने उन्हें लोगों के दिलों में बिठा दिया है।
अपने आईडिया से मिली पहचान
सालों तक इधर-उधर भटकने और धक्के खाने के बाद हृतेष के हाथ जो कामयाबी लगी है, वो अद्भुत है। सफलता पाने के लिए हृतेष ने आखिर क्या नहीं किया। उसने कैमिकल फैक्ट्री, वाशिंग पाउडर और स्टोन कटिंग जैसे कई सारे काम में अपना हाथ आज़माया। लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी। एक साधारण-सा आदमी, जो बिसनेस में घाटे में डूब रहा था। 2009 में जब मंदी अपने चरम पर थी। हताशा और निराशा ने डेरा जमाया हुआ था। ऐसे में हृतेष ने वो तरीका अपनाया, जिसने उनकी ज़िन्दगी ही बदल दी। हृतेष ने अपनी पत्नी प्रीति के साथ मिलकर उस कबाड़ को सोना बना दिया जिसे लोग बेकार समझते हैं।
हृतेष लोहिया (Hritesh Lohiya) ने कबाड़ से तैयार होने वाले साजो सज्जा के समान के अपने आइडिया को देश ही नहीं बल्कि विदेश तक ले गये और देखते ही देखते मशहूर हो गये। आज वो इस आइडिया के बलबूते हर साल करोड़ों का बिजनेस कर रहे हैं। उन्होंने अपना काम एक छोटी-सी प्रोडक्शन यूनिट में कबाड़ से कुर्सी, अलमारी, मेज, सोफा, स्टूल, बैग जैसी चीजें बनाने से शुरु किया था। जिसका टर्नओवर आज 35 करोड़ से ज्यादा है। हृतेष की इनकम का एक बड़ा हिस्सा चाईना, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, जापान, कोरिया जैसे कई देशों में निर्यात करने से आता है।

जैसे-जैसे हृतेष लोहिया (Hritesh Lohiya) के आइडिया को लोग पसंद करने लगे उन्होंने स्टूल, मेज के साथ-साथ सोफा, दरी, कारपेट, तकिया जैसी घरेलू चीजें बनानी भी शुरू कर दी। आज प्रीति इंटरनेशनल से तीन बड़ी प्रोडक्शन यूनिट काम कर रही हैं, जो बोरानाडा में जूट का सामान बनाती है। बसानी में टेक्स्टाईलस का काम होता है। कबाड़ को यूनिक ढंग से सजाना युवा पीढ़ी को बहुत पसंद आ रहा है। इसकी ज्यादातर मांग क्लब्स, बार, पब, रेस्टोरेंट्स या कैफे जैसी जगह पर है।
कैसे आया ये आईडिया?
तो चलिए अब जानते हैं, हृतेष को यह आइडिया आखिर आया कैसे? मंदी के बुरे दौर में जब हृतेष संघर्ष कर मुश्किलों से जूझ रहे थे, तब एक दिन डेनमार्क से आए एक ग्राहक की नज़र कोने में पड़े डब्बे पर बड़े ही कलात्मक और आकर्षक रूप से रखे हुए गद्दे पर पड़ी। और हृतेष की ऐसी कलाकारी को देख उस व्यक्ति ने बेहद तारीफ की और साथ ही हृतेष लोहिया (Hritesh Lohiya) को यह सलाह भी दी कि वो कबाड़ से ऐसे हो और डिजाइन बनाएं। जिंदगी में तब हर तरफ निराशा थी, जिसके बीच आर्थिक तंगी से जूझ रहे हृतेष को भी यह आइडिया बेहद पसंद आया और क्योकिं ज्यादा विकल्प नहीं थे। हृतेष के इन सामानों की सबसे ख़ास बात यह थी कि यह सभी पूरी तरह से हाथों से तैयार किये जाते हैं।
कभी-कभी कबाड़ भी कम पड़ जाता है
आपको एक मज़े की बात बताते हैं कि आज विदेशों में प्रीति इंटरनेशनल के सामान की इतनी जबरदस्त माँग है, कि कभी-कभी कबाड़ नहीं मिल पाने के कारण नए सामान को कबाड़ बना कर ऑर्डर्स की डिमांड को पूरा करना पड़ता है। अभी एक हाल ही का किस्सा है। कोरिया से प्रीति इंटरनेशनल को 2000 दरी के ऑर्डर दिए गये। जिसके लिए हृतेष को सेना के टेंट और कपड़े नीलामी में खरीदने पड़े। इस दरी को बनाने का खर्च मात्र 500 रुपये है और इसका सेलिंग प्राइस 2000 रुपये। देख रहे हैं कबाड़ में लगे दिमाग का जादू।
हृतेष की इस सफलता ने और कई युवाओं को प्रेरित किया है। इसका असर इतना ज्यादा हुआ है कि युवा उद्यमी इस क्षेत्र में काम करने के साथ-साथ अपना भविष्य भी बना रहें हैं। मेहनत से वो खुद सफल हुए, सेकड़ों लोगों को रोजगार मिला और इससे लगातार माँग बढ़ने से कबाड़ से जुड़े लोगों की कमाई भी बढ़ गयी। जोधपुर में 2000 से अधिक गरीबों का जीवन इस उद्योग से जुड़ कर बेहतर हो गया है।

कबाड़ को सोना बनाने का यह जबरजस्त आइडिया जहाँ रोजगार के नए अवसर पैदा कर रहा है। वहीं मशीनों के उपयोग नहीं होने से छोटे से छोटे तबके के अनपढ़ गरीब लोगों को भी काम मिल रहा है। न तो पर्यावरण को कोई हानि हो रही है, उल्टा कबाड़ का सदुपयोग प्रदूषण के स्त्रोतों को भी सीमित और कम कर रहा है। यह बात सौ आने सच है। बात सिर्फ़ नज़रिए की है कि आपको किसमें क्या नज़र आता है। वो कबाड़ जो बेकार था आज इतना कीमती हो गया है कि लोगों को इसने फर्श से अर्श पर पहुंचा दिया है। हृतेष की पारखी नजर और कुशल हाथों ने तो कमाल ही कर दिया।