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IAS की परीक्षा में सबसे बड़ी बाधा है ‘हिंदी’ दरअसल ये बाधा नहीं, डर है जो हिंदी मीडियम के बच्चों को इस परीक्षा को देने से पहले ही भूत की तरह डराता है। लोगों के मन में यह अवधारणा बनीं हुई है कि हिंदी माध्यम के बच्चों के लिए UPSC की परीक्षा ज्यादा कठिन है आप पास तो हो सकते हैं लेकिन टॉप नहीं कर सकते। इस भ्रम को तोडा है राजस्थान के रेगिस्तानी जिले बाड़मेर के गंगा सिंह राजपुरोहित ने।

UPSC में सफलता का कीर्तिमान स्थापित कर हिंदी मीडियम के सरल व सौम्य युवा IAS अधिकारी गंगा सिंह राजपुरोहित ने तमाम उन बच्चों को उम्मीद और हौसला दिया है जो केवल हिंदी माध्यम से होने की वजह से अपने कदम पीछे हटा लेते हैं। गंगा सिंह जो गाँव से निकलकर आये और क़दम-दर-क़दम असफलताओं से होकर अपनी सफलता की राह बनाई और अंततः अपना लक्ष्य हासिल किया। गंगा सिंह की सफलता हिंदी मीडियम के युवाओं के लिए प्रेरणा का स्त्रोत है।

प्राम्भिक एवं उच्च शिक्षा

गंगा का बचपन गांव में बीता और गाँव में ही हाईस्कूल तक की पढ़ाई भी की। उनके परिवार में सिविल सेवा में तो कोई भी नहीं था जो उनका सही रूप से मार्गदर्शन करता, लेकिन कईं लोग दूसरी सरकारी सेवाओं में कार्यरत थे जिससे गंगा को एक सकारात्मक माहौल मिला। 2009 में जब उन्होंने स्कूल में दसवीं क्लास में टॉप किया, तो उनके शिक्षकों ने उन्हें विज्ञान विषय चुनने के लिए कहा लेकिन वो बताते हैं उनके परिजनों ने हमेशा से ही उन्हें स्वतंत्रता दी कि वो अपनी रूचि का विषय पढ़ें और जिस भी क्षेत्र में चाहे आगे बढ़ें।

दसवीं की सफलता के बाद गंगा सिंह इंटरमीडियट में पूरे जिले में छठवे स्थान पर रहे। इसके बाद कई लोगों ने गंगा सिंह को राय दी कि कोटा जाकर आई.आई.टी. की तैयारी करो। लेकिन अपनी पृष्ठभूमि के कारण वो हिंदी माध्यम के साथ ज्यादा सहज थे इसलिए उन्होंने जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर में बी.एस.सी. में प्रवेश ले लिया और बी.एस.सी. के अंतिम वर्ष 2014 के दौरान ही उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा के बारे में सोचा और यहीं से उनके UPSC का सफर शुरू हुआ।

सिविल सर्विसेस को बनाया लक्ष्य

गंगा सिंह बताते हैं कि उस दौरान उन्होंने श्री नथमल डिडेल और श्री कानाराम जी जैसी पृष्ठभूमि के लोगों को सफल होते देखा तो उनका विश्वास और दृढ़ हो गया। बी.एस.सी. करने के साथ उन्होंने सी.डी.एस. और असिस्टेंट कमांडेंट की परीक्षाएं भी दी और 2-3 बार एस.एस.बी. तक भी पहुँच गये, लेकिन सफलता हाथ न लगी और अपने लक्ष्य की दिशा में अग्रसर गंगा सिंह ग्रेजुएशन पूरा होते ही दिल्ली आ गये। अक्टूबर 2014 में गंगा ने यह तय किया कि अगले वर्ष वो सिविल सेवा परीक्षा देंगे और इसी के साथ-साथ उन्होंने जे.एन.यू. में एम.ए. हिंदी में प्रवेश ले लिया और वैकल्पिक विषय के रूप में हिंदी साहित्य को चुनकर तैयारी शुरू कर दी।

सफलता की शुरुआत

अपने पहले प्रयास में ही प्रारंभिक परीक्षा उतीर्ण होने से गंगा सिंह का आत्मविश्वास काफी बढ़ गया। किन्तु समय कम था और सिलेबस पूरा नहीं हो पाया था उसके साथ ही उस समय वो लेखन का अभ्यास नहीं कर पाये थे। इस वजह से वो मुख्य परीक्षा में महज 16 अंकों की कमी से फेल हो गये। लेकिन इस असफलता से वो बिल्कुल भी निराश नहीं हुए बल्कि अगली बार के लिए उन्होंने कमर कस ली। जे.एन.यू. के दोस्तों का सकारात्मक सहयोग, लाइब्रेरी के साथियों का मार्गदर्शन और प्रोफेसर्स की पढ़ाने की शैली ने उनकी समझ को और अधिक विकसित किया, जिससे उनकी राह की काफी मुश्किलें कम हो गयी और रास्ता और अधिक सुगम हो गया।

गंगा सिंह ने पुनः प्रयास किया और इस बार उनकी अच्छी खासी तैयारी हो गई थी। देश-दुनिया के समसामयिक मुद्दों पर दोस्तों के साथ एक अच्छी डिबेट हुआ करती थी जिसने उनकी जानकारी को बढ़ाया और साथ ही उनके व्यक्तित्व को भी निखारा। इसी का परिणाम था कि इस बार उनको जबर्दस्त सफलता मिली। मेहनत रंग लाई और उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा 2016 में ऑल इंडिया में 33वीं रैंक प्राप्त की। आज वो एक IAS officer हैं।

सकारात्मक दृष्टिकोण

गंगा सिंह राजपुरोहित कहते हैं कि सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने वाले हर एक बच्चे को उनकी यही सलाह है कि नकारात्मकता एवं हिंदी माध्यम से होने के डर को अपने जेहन में कभी भी स्थान ना दें। आपकी पृष्ठभूमि और परीक्षा का माध्यम आदि आपकी सफलता में कभी भी बाधा नहीं बनेगा। बस जरुरत है तो परिश्रम करते रहने एवं आत्मविश्वास बनाये रखने की। साथ ही वो यह भी कहते हैं कि “समस्त युवा साथियों से मेरा आग्रह है कि अपनी सोच को हमेशा सकारात्मक रखें। किसी भी प्रकार के बहकावे में न आते हुए स्वतंत्र चिंतन करें और अपने क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन करें। राष्ट्र का सशक्तीकरण युवाओं के सशक्तीकरण से ही संभव है।“

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